थाइमस ग्रंथि का संक्षिप्त वर्णन (Brief description of thymus gland)

थाइमस ग्रंथि

थाइमस एक अंतःस्रावी ग्रंथि है जो स्टर्नम के पीछे व फेफड़ों के बीच स्थित होता है। यह केवल युवावस्था तक सक्रिय होता है, उसके पश्चात यह धीरे-धीरे सिकुड़ने लगता है एवं वसा द्वारा प्रतिस्थापित हो जाता है। यह थाइमोसिन (Thymosin) नामक हॉर्मोन का स्रावण करता है जो रोग से लड़ने वाली T-कोशिकाओं के विकास को उत्प्रेरित करता है।

हालाँकि यह ग्रंथि जीवनपर्यन्त कार्य नहीं करती किन्तु सक्रियता की अवस्था में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह शरीर को स्वप्रतिरक्षा (Anto immunity) से बचाती है। यह तब होता है जब प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के विरुद्ध कार्य करने लगती है इसलिए थाइमस लसीका प्रणाली एवं अंतःस्रावी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

जन्म से पहले एवं बाल्यावस्था में यह T लिम्फोसाइट या T कोशिकाओं के उत्पादन व परिपक्वता में सहायक होती है जो कि एक विशिष्ट प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका होती है। यह कोशिका विषाणु व संक्रमण सहित अनेक खतरों से शरीर की रक्षा करती है।

थाइमस में दो लोब (Lobe) होते हैं। युवावस्था के दौरान इसका वजन अधिकतम (लगभग । औंस) होता है। प्रत्येक लोब में दो भाग होते हैं- केन्द्रीय मेड्यूला एवं बाहरी कॉर्टेक्स। ये दोनों भाग कैप्सूल से घिरे होते हैं। थाइमस ग्रंथि अपरिपक्व T कोशिकाओं थाइ‌मोसाइट्स (Thymocytes) की बनी होती है।

थाइमस ग्रंथि के कार्य

थाइमस ग्रंथि का प्रमुख कार्य थाइमोसिन (Thymosin) हॉर्मोन स्रावित करना है जो T कोशिकाओं की परिपक्वता को उत्तेजित करता है। बाल्यावस्था में थाइमस से गुजरने वाली श्वेत रक्त कणिकाएँ (लिम्फोसाइट्स) T कोशिका में रूपांतरित हो जाती हैं। जब T कोशिका थाइमस में पूर्ण रूप से परिपक्व T कोशिका में बदल जाती है, तब यह लिम्फ नोड की ओर प्रवास करती है एवं प्रतिरक्षा तंत्र में सहयोग करती है।