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कशेरुकी प्राणियों में मेरुरज्जू (spinal cord in vertebrates in Hindi)

कशेरुकी प्राणियों में मेरुरज्जूमेरुरज्जू मस्तिष्क के पश्च भाग में तंत्रिका नलिका से बनती है यह बेलनाकार पर पृष्ठीय अधर सतह (Dorso ventral) पर चपटी होती है। इसमें एक केन्द्रीय नलिका (Central canal) होती है। सुषुम्ना की मध्य अधर दिशा में एक गहरी अधर विदर (Ventral fissure) होती है। मध्य पृष्ठीय तरफ एक पृष्ठीय खाँच होती है। मेरुरज्जू में बाहर की ओर श्वेत मज्जा (White marrow) होता है जिसमें न्यूरोग्लीया एवं तंत्रिका तंतु होते हैं तथा आंतरिक धूसर मज्जा (Grey marrow) होता है जिसमें नानमाइलिनेटेड तन्तु पाये जाते हैं।(1) मछली (Fishes) - स्कॉलियोडॉन में मेरुरज्जू पूँछ के अंतिम सिरे तक रहती है। यह एक बेलनाकार के समान होती है। यह दो अर्धशों की बनी होती है। बाह्य सफेद मज्जा एवं आंतरिक धूसर पदार्थ । छड़ उपास्थिमय एवं अस्थिल (Bony) मछलियों में मेरुरज्जू की सरंचना समान होती है।(2) मेढक (Frog) - मेढ़क में मेरुरज्जू मेड्यूला आब्लॉगेटा के भाग से शुरू होकर यूरोस्टाइल तक रहती है। यह मेरुदण्ड की नाल में उपस्थित होती है मेरुरज्जू के चारों तरफ मेनिन्जम से ढंकी रहती है जो कि ड्यूरामेटर एवं पायामेटर से बनी होती है। सुषुम्ना अनुप्रस्थ काट में गोलाकार ना होकर पृष्ठीय अधर सतह पर चपटी होती है, यह सातवें कशेरुक के पश्चात् पतले धागे समान होती है जिसे अन्तस्थ सूत्र कहते हैं। सुषुम्ना में अधरीय विदर एवं पृष्ठ पर पाये जाते हैं।(3) रेप्टाइल (यूरोमेस्टिक्स) – इसमें मेरुरज्जू पृष्ठीय अधरीय (Dorso ventrally) चपटी होती है। इसमें एक पृष्ठीय खाँच, मध्य अधरीय खाँच तथा अधर खाँच होती हैं।अनुप्रस्थ काट में इसमें धूसर पदार्थ H आकृति का दिखाई देगा। इसके पृष्ठीय एवं अधरीय भृंग से स्पाइनल नर्व निकलती है। सफेद पदार्थ पृष्ठीय अधरीय एवं पार्श्व प्यूनिकूलाई में विभाजीत होता है।(4) पक्षी (Birds) - कबूतर में मेरुरज्जू, कशेरुक दण्ड की पूरी लम्बाई तक पाया जाता है पर फाइनल टर्मिनल नही पाया जाता। इसके मेरुरज्जू में बैंकियल एवं लम्बर में स्थूलन (Swelling) पाया जाता है। लम्बर स्थूलने के कारण धूसर पदार्थ के पृष्ठीय भृंग बाहर की ओर प्रसारित हो जाते हैं जिसके कारण केन्द्रीय नाल में एक चौड़ी गुहिका पायी जाती है जिसे सानइस रोम्बोइंडेलिस कहते हैं जिसमें जिलेटिन पदार्थ भरा होता है।(5) स्तनधारी (खरगोश) - खरगोश में मेरुरज्जू अग्र एवं पश्च उपांगों के जोड़ों के पास फूलकर क्रमश: बैंकियल एवं कटि उत्फूलन बनाती है। कटि उत्फूलन के बाद मेरुरज्जू धीरे-धीरे पतली हो जाती है।