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थायरॉइड ग्रंथि पर टिप्पणी - Comments on Thyroid gland in Hindi

थायरॉइड ग्रंथि (Thyroid gland)

स्थिति (Position) - यह ग्रन्थि मनुष्य के गर्दन में श्वासनली व स्वर-यन्त्र के जोड़ के अधर- पार्श्व तल पर दोनों तरफ एक- एक की संख्या में स्थित होती है। इसका उद्गम भ्रूण की ग्रसनी भाग से जिव्हा के आधार से होता है।संरचना (Structure) - यह मनुष्य की सबसे बड़ी लगभग 30-35 ग्राम की अन्तःस्रावी ग्रन्थि है, जो दो पालियों की बनी होती है। दोनों पालियाँ श्वासनली के इधर-उधर स्थित होती हैं तथा संयोजी ऊतक की एक पतली अनुप्रस्थ पट्टी से जुड़ी होती है, जिसे इस्थमस (Isthmus) कहते हैं। स्त्रियों की थायरॉइड पुरुषों की अपेक्षा थोड़ी बड़ी है।संरचनात्मक दृष्टि से इसके चारों तरफ संयोजी ऊतक का आवरण होता है, जिसके अन्दर संयोजी ऊतक के ही एक ढीले आधार स्ट्रोमा (Stroma) में गोल व खोखली पुटिकाएँ व्यवस्थित रहती हैं। पुटिकाओं (Follicles) की दीवार घनाकार ग्रन्थिल कोशिकाओं की बनी होती हैं। पुटिकाओं की गुहा में एक गाढ़े रंग का आयोडीन युक्त कोलॉइडी द्रव भरा होता है, जिसे थायरोग्लोब्यूलिन (Thyroglobulin) कहते हैं, जो जेली जैसा पारदर्शक द्रव है। इसी में इस ग्रन्थि के हॉर्मोन निष्क्रिय अवस्था में रहते हैं। यह मनुष्य की एकमात्र ऐसी अन्तःस्रावी ग्रन्थि है, जो हॉर्मोन को निष्क्रिय अवस्था में पुटिका कोशिकाओं द्वारा स्रावित करते हैं। थायरॉइड ग्रन्थि में पुटिकाओं के अलावा कुछ कोशिकाओं के ठोस गुच्छे भी पाये जाते हैं, जिन्हें पैरापुटिकीय अथवा C कोशिका कहते हैं।

थायरॉइड हॉर्मोन्स का जैव-संश्लेषण (Biosynthesis of Thyroid hormones)

शरीर में थायरॉइड ग्रन्थि आयोडीन के लिए कार्यात्मक अंग है सामान्य मनुष्य के द्वारा 100-150mg आयोडीन प्रतिदिन भोजन में ली जाती है। थायरॉइड हॉर्मोन्स के संश्लेषण में अनेक जटिल विधियाँ कार्य करती है। आयोडीन जठर आन्त्रीय पथ में विघटित होता है तथा आयोडाइड के रूप में अवशोषित होता है जो कि रक्त धारा में चला जाता है। रक्त प्रवाह के द्वारा यह दैहिक संवहन में संवाहित होता है जो रक्त, थायरॉइड के अन्दर प्रवाह करता है उसमें से थायरॉइड के द्वारा सक्रिय रूप से संग्रहित कर लिया जाता है।थायरॉइड हॉर्मोन के संश्लेषण में सबसे पहले थायरॉइड के द्वारा अकार्बनिक आयोडाइड का संग्रहण किया जाता है। यह एक सक्रिय विधि द्वारा किया जाता है जिसका ट्रैपिंग कहते हैं। आराम अवस्था में थायरॉइड आयोडीन को 201 अनुपात में संग्रहित करती है। उत्प्रेरण की अवस्था में इसकी मात्रा में वृद्धि होती है। आयोडीन को ट्रेप करने की क्षमता थायरॉइड ग्रन्थि की विशेष क्रिया नहीं होती है, बल्कि यह कार्य लार ग्रन्थि, जठरोय ग्रन्थि द्वारा भी किया जाता है एक बार जैसे ही आयोडीन थायरॉइड ग्रन्थि से संग्रहीत होता है। इसमें ऑक्सीकरण की क्रिया होती है थायरॉइड ग्रन्थि में एक पर ऑक्सिडेज (Peroxidase) एन्जाइम पाया जाता है जो कि ऑक्सीकरण की क्रिया में सहायक होता है। इस प्रकार कोशिका में ऑक्सीकरण की क्रिया के द्वारा थायरॉइड ग्रन्थि में आयोडीन मुक्त होती है।।

थायरॉइड ग्रन्थि के हॉर्मोन्स (Hormones of Thyroid gland)

थायरोग्लोब्यूलिन वास्तव में एक प्रोटीनस पदार्थ हैं, जिसका टायरोसीन अमीनो अम्ल रुधिर में उपस्थित आयोडीन से मिलकर दो हॉर्मोन बना देता है। रुधिर का आयोडीन रुधिर से विसरित होकर पुटिका गुहा में आता है और हॉर्मोन बनने के बाद यह हॉर्मोन विसरण द्वारा रुधिर में मिल जाता है, क्योंकि थायरॉइड की स्ट्रोमा में बहुत-सी रुधिर कोशिकाएँ फैली होती हैं। इसक प्रकार थायरॉइड ग्रन्थि दो हॉर्मोन्स का स्राव करती है-1. थायरॉक्सिन (Thyroxine or Tetra-iodothyronine or T4) - केण्डाल (1914) ने सबसे पहले इस हॉर्मोन के रवे बनाये। इस हॉर्मोन का लगभग 65% भाग आयोडीन होता है। यह हमारे शरीर तथा उनकी। कोशिकाओं में निम्नलिखित कार्यों को करता है -(i) यह उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण करता है। थायरॉक्सिन मुख्यत: कोशिकाओं की माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या तथा माप को नियन्त्रित कर ऑक्सीकरण उपापचयी क्रियाओं को नियन्त्रित करता है।(ii) यह शरीर की वृद्धि एवं भिन्न के लिए आवश्यक है। यदि मेढक के भेक शिशु की थायरॉइड को निकाल दिया जाय तो यह मेढक में रूपान्तरित नहीं हो पाता।(iii) उपापचयी नियन्त्रण के कारण यह शरीर के ताप का भी नियन्त्रण करता है।

थायरॉक्सिन अनियमितताएं (Abnormalities of thyroid)

सभी हॉर्मोनों की यह विशेषता है कि जब इनकी मात्रा हमारे शरीर में कम या अधिक हो जाती है, तब कई विकृतियाँ पैदा होती हैं।(A) अल्प स्त्रावण (Hyposecretion) – थायरॉक्सिन के कम मात्रा में स्रावण से निम्नलिखित रोग होते हैं-(i) जड़वामनता (Cretinism) - बच्चों में थायरोक्सिन की कमी से वह रोग होता है, जिसमें बच्चे बौने, कुरूप तथा मानसिक दृष्टि से कम विकसित हो जाते हैं। इनके होंठ व जिव्हा मोटे, पेट बड़ा, जननांग व त्वचा सूख जाती है। यह रोग उपापचयी क्रिया की दर के घटने के कारण होता है।((ii) मिक्सोडेमा (Myxoedema) - वयस्कों में थायरॉक्सिन की कमी से यह रोग होता है जिसमें बाल झड़ने लगते हैं, त्वचा ढीली होकर फूल जाती है और त्वचा के नीचे वसा व श्लेष्मा का जमाव बढ़ जाता है। होंठ व पलकें मोटी हो जाती हैं, जनदों की क्रियाशीलता घट जाती है और शरीर भद्दा व फूला दिखने लगता है।(iii) सामान्य घेंघा (Simple goitre) - जब भोजन में आयोडीन की कमी हो जाती है, तो इसकी पूर्ति के लिए थायरॉइड ग्रन्थि फूलकर अधिक थायरॉक्सिन बनाने का प्रयास करती है। थायरॉइड ग्रन्थि के फूलने के कारण गर्दन फूलकर मोटी हो जाती है। इस बीमारी को घेंघा रोग (Goitre) कहते हैं। आयोडीन युक्त (O-5) पोटैशियम आयोडाइड + 100 ग्राम नमक मिश्रण) खाने से यह बीमारी नहीं होती है।(iv) हाशीमोटो रोग (Hashimoto's disease) – जब कभी थायरॉक्सिन की कमी से होने वाले प्रभावों को दूर करने के लिए दी जाने वाली दवाएँ, विदेशी पदार्थ के समान व्यवहार करने लगती हैं, तब ऐसी स्थिति में शरीर में इनके प्रतिरक्षा (Antibodies) बनने लगते हैं, जो थायरॉइड ग्रन्थि को नष्ट कर देते हैं इस स्थिति से उत्पन्न रोग को हाशीमोटो रोग कहते हैं। चूंकि इसमें धायरॉइड ग्रन्थि शरीर में बने पदार्थ के कारण समाप्त होती है इस कारण इसे "थायरॉइड को आत्महत्या" कहते हैं।थायरॉक्सिन का कृत्रिम रूप से भी संश्लेषण किया जाता है। इसकी कमी को भोजन में आयोडीन की मात्रा को बढ़ाकर पूरा किया जा सकता है।(B) अति स्त्रावण (Hypersecretion) - थायरॉक्सिन की अधिकता (Hyperactivity) होने पर उपापचयी क्रियाएँ बढ़ जाती हैं, जिससे शरीर पर निम्न प्रभाव पड़ता है-(i) उपापचयी क्रिया बढ़ने के कारण शरीर का तापक्रम बढ़ जाता है। इस प्रकार के मनुष्य को जाड़े में भी गर्मी महसूस होती है।(ii) भोज्य पदार्थों के तेजी से पचने के कारण भूख ज्यादा लगती है तथा मनुष्य का भार बढ़ जाता है।(iii) उपापचय बढ़ने के कारण तन्त्रिका कोशिकाएँ अधिक क्रियाशील व संवेदनशील हो जाती हैं, फलत: मनुष्य का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। इसी कारण इस ग्रन्थि को स्वभाव ग्रन्थि (Temperament gland) भी कहते हैं। थायरॉक्सिन की मात्रा बढ़ाने पर आयोडीन की मात्रा भी बढ़ जाती है, जो सिम्पैथेटिक तन्त्रिका तन्त्र को उत्तेजित कर देती है और मनुष्य का स्वभाव बदल जाता है।(iv) हृदय की गति बढ़ जाती है।(v) आँखें चौड़ी, खुली व बाहर की ओर उभरी दिखायी देती हैं। इस रोग को एक्सोप्थोल्मिक गोइटर कहते हैं।2. ट्राइआयोडो थायरोनीन (Tri-iodo Thyronine) - इसे T3 भी कहते हैं। यह भी टायरोसीन अमीनो अम्ल और आयोडीन के मिलने से बनता है। इसका लगभग 10% भाग टायरोसीन अमीनो अम्ल का बना होता है। यह थायरॉक्सिन के समान ही है लेकिन थायरॉक्सिन की अपेक्षा चार गुना अधिक प्रभावी होता है। कोशिकाओं में जाकर थायरॉक्सिन भी T3 में बदल जाता है।3. थायरोकेल्सिटोनिन (Thyrocalcitonin) - यह हॉर्मोन प्रोटीन होता है और थायरॉइड के स्ट्रोमा में पायी जाने वाली पैरापुटिका कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित होता है। यह हॉर्मोन रुधिर तथा मूत्र में Ca की मात्रा को नियन्त्रित करता है।

थायरॉइड ग्रन्थि का नियन्त्रण (Control of Thyroid glands)

इस ग्रन्थि का नियन्त्रण पीयूष ग्रन्थि में बनने वाला हॉर्मोन थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन करता है। इसके अलावा इसका पुनर्निवेशन नियन्त्रण भी होता है। ठण्ड के दिनों में ठण्ड से प्रभावित होकर भी यह ग्रन्थि अधिक लावण करती है।