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पीयूष ग्रंथि पर टिप्पणी - Comments on Pituitary Gland in Hindi

पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland)

स्थिति (Position) - यह अग्रमस्तिष्क के डायनसेफलान भाग के नीचे की दीवार से खोपड़ी की स्फीनॉइड अस्थि के सेलारसिका (Sellaturcica) नामक गड्ढे में लटकी रहती है। यह मस्तिष्क के इनफण्डलम से एक छोटे से वृन्त द्वारा जुड़ी रहती है। इस ग्रन्थि को हायपोफायसिस (Hypophysis) भी कहते हैं। यह ग्रन्थि भ्रूण की ग्रसनी तथा मस्तिष्क के हायपोथैलेमस (Hypothalamus) से उत्पन्न होती है। यह शरीर की कई अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर नियन्त्रण रखती है, इस कारण इसे पहले 'मास्टर ग्रन्थि भी कहते थे।संरचना (Structure) – यह लगभग एक सेमी लम्बी 5-6 ग्राम भारी होती है। स्त्रियों की पीयूष ग्रन्थि थोड़ी बड़ी होती है। रचनात्मक दृष्टि से बाहर से देखने पर यह तीन पिण्डों- अग्र पाली, मध्य पाली और पश्च पाली की बनी होती है।(A) अग्ग्र पाली (Anterior lobe or Parsdistalis) - यह अगला गुलाबी रंग का भाग है, जो पीयूष ग्रन्थि का 75% भाग बनाता है और तीन प्रकार की कोशिकाओं का बना होता है। परिधि की कोशिकाएँ बेसोफिल्स, केन्द्र की कोशिकाएँ ऐसिडोफिल्स तथा बिखरी हुए कोशिकाएँ क्रोमोफिल्स कहलाती हैं। अग्र पाली में कुल 11 हॉर्मोन बनते हैं जिसमें से केवल 6 के बारे में ही पूर्ण जानकारी प्राप्त है -(i) सोमैटोट्रॉफिक हॉर्मोन (Somatotrophic Hormone =S.T.H.) - यह शारीरिक वृद्धि को नियन्त्रित करता है तथा प्रोटीन की उपापचयी क्रियाओं को बढ़ाकर वृद्धि को उत्तेजित करता है। इसका प्रभाव शरीर की लम्बी अस्थियों पर ज्यादा पड़ता है।अधिकता (Hyper Activity) - बचपन में इसकी अधिकता होने पर शरीर हृष्ट-पुष्ट तथा बलवान होता है। वयस्क में इसकी अधिकता होने पर हाथ-पाँव लम्बे हो जाते हैं, जबड़े आवश्यकता से अधिक बढ़ जाते हैं, आँखों तथा गालों के ऊपर की अस्थियाँ अधिक बढ़ जाती हैं, जिससे चेहरा व शरीर भद्दा दिखता है। इसस्थिति को ऐक्रोमेगाली (Acromegaly) कहते हैं।कमी (Hypo Activity) - इसकी कमी होने पर व्यक्ति छोटा ही रह जाता है, वह बढ़ता नहीं। इस व्यक्ति को ड्वार्फ या मिगेट (Miget) कहते हैं।(ii) गोनैडोट्रॉफिक हॉर्मोन (Gonadotrophic Hormone = G.T.H.) - इसे गोनैडोट्रॉफिन (Gona- dotrophin) भी कहते हैं। ये गोनैड्स को उत्तेजित करके लैंगिक क्रियाशीलता को नियन्त्रित करते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-(अ) फॉलिकिल उत्तेजक हॉर्मोन (Follicle Stimulating Hormone = F.S.H.) - मादा में यह फॉलिकल तथा अण्डों के निर्माण व नर में शुक्राणुओं के निर्माण को उत्तेजित करता है।(ब) ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (Luteinizing Hormone = L.H.) - इसे अन्तराली कोशिका प्रेरक (Interstitial cell Stimulating hormone) भी कहते हैं। नर में यह वृषण द्वारा टेस्टोस्टीरॉन हॉर्मोन के स्राव को उत्तेजित करता है। मादा में यह थीकाइण्टरना की कोशिकाओं को एस्ट्रोजन (Estrogen) तथा प्रोजेस्टीरॉन (Progesterone) नामक हॉर्मोन स्रावित करने को प्रेरित करता है। मादा में यह फॉलिकल परिपक्वन तथा अण्डोत्सर्ग (Ovulation) को नियन्त्रित करता है।अधिकता (Hyper Activity) -अधिकता होने पर लैंगिक परिपक्वता जल्दी आ जाती है।कमी (Hypo Activity) - मादा में इसकी कमी होने पर अण्डाशय का आकार क्षीण होने लगता है, फॉलिकल नष्ट हो जाते हैं, गर्भाशय तथा योनि विलुप्त हो जाते हैं। नर में इसकी कमी होने पर जनन तन्त्र विलुप्त होने लगता है, वृषण पिलपिले छोटे और आकारहीन हो जाते हैं, सेमिनिफेरस ट्यूब्युल नष्ट हो जाते हैं। बचपन में ही कमी हो जाने पर वृषण उदर में ही रह जाता है। इन गुणों से युक्त नर को क्रिप्टोकिंड (Cryptorchid) कहते हैं।(iii) ऐड्रीनोकॉर्टिकोट्रॉफिक हॉर्मोन (Adrenocorticotrophic hormone = A.C.T.H.) - यह सुप्रारीनल ग्रन्थि के स्राव को नियन्त्रित करता है। इसकी अधिकता से सुप्रारीनल ग्रन्थियों की वृद्धि अधिक हो जाती है, लेकिन कमी से ये ग्रन्थियों धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं।(iv) थायरोट्रॉफिक हॉर्मोन या थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (Thyrotrophic hormone or Thyroid stimulating hormone) – यह थायरॉइड ग्रन्थि को नियन्त्रित करता है। इसकी कमी तथा अधिकता से थायरॉक्सिन की कमी और अधिकता के लक्षण दिखायी देते हैं।(v) लैक्टोजीनिक हॉर्मोन (Lactogenic hormone) - यह हॉर्मोन गर्भवती महिलाओं में दुग्ध निर्माण को प्रेरित करता है। यह कॉर्पस ल्यूटीयम से प्रोजेस्टीरॉन हॉर्मोन के स्राव को उत्तेजित करता है।अधिकता (Hyper activity) - इसकी अधिकता से मादा में असमय में दूध बनता है तथा स्तन बड़े हो जाते हैं।कमी (Hypo activity) - इसकी कमी से दूध निर्माण नहीं होता तथा स्तन छोटे रह जाते हैं।(vi) डायबेटोजेनिक हॉर्मोन (Diabetogenic hormone) – यह कार्बोहाइड्रेट के उपापचय को नियन्त्रित करता है। यह प्रोटीन एवं वसा की उपापचय को भी प्रभावित करता है तथा इन्सुलिन के विपरीत कार्य करता है।इन्सुलिन की कमी से मानव में मधुमेह नामक रोग होता है जिससे रक्त में शक्कर की मात्रा बढ़ने लगती है जो मानव शरीर के सभी तंत्रों को खराब करती है एवं रक्त गाढ़ा होने लगता है। जिसका सीधा असर हृदय एवं अन्य महत्वपूर्ण अंगों पर पड़ता है।(vii) मिलैनोसाइट प्रेरक हॉर्मोन (Melanocyte stimulating hormone = M.S.H.) - वास्तव में यह मध्य पाली में बनने वाला हॉर्मोन है, लेकिन मनुष्य की मध्य पाली के अल्पविकसित होने के कारण यह अग्र पाली से स्त्रावित होता है। पक्षियों तथा अन्य अल्पविकसित कशेरुकियों में यह वर्णक त्वचा की कोशिकाओं में मिलेनिन वर्णक को फैलाकर इनके रंग को नियन्त्रित करता है, परन्तु मनुष्य में यह शायद त्वचा पर तिल तथा चकते बनने को प्रेरित करता है।(B) मध्य पाली (Intermediate lobe or Pars intermedia) - मनुष्य का यह भाग बहुत कम विकसित होता है और केवल एक झिल्ली के रूप में पाया जाता है। मनुष्य में कम विकसित होने के कारण इसमें बनने वाले हॉर्मोन का स्राव अग्र पाली में होता है। जबकि शेष कशेरुकियों का यह भाग M. S.H. बनाता है।(C) पश्च पाली (Posterior lobe or Neurohypophysis) – मनुष्य की पीयूष ग्रन्थि का यह सबसे पिछला भाग है, जो सम्पूर्ण ग्रन्थि का लगभग 1/4 भाग बनाता है। यह भाग तन्त्रिका ऊतक के समान होता है, क्योंकि इस भाग में हायपोथैलेमस की तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं के ऐक्सॉन तथा इनकी सिरीय घुण्डियाँ (Terminal knobs) पायी जाती हैं। इन घुण्डियों में तन्त्रिका स्रावी कोशिकाओं के साव भर जाते हैं, जिससे ये सिरे फुल जाते हैं, जिन्हें हेरिंग काय (Herring bodies) कहते हैं। हाइपोथैलेमस सामान्य रूप से भूख व प्यास का आभास कराने के साथ ही शरीर के ताप की मात्रा तथा भावात्मक क्रियाओं का नियन्त्रण करता है इसके साथ ही यह कुछ हॉर्मोन्स का स्त्रावण करता है जो कि पीयूष ग्रन्थि की अग्रपालि के विभिन्न हॉर्मोनों के स्त्रावण को प्रेरित करता है इन हॉर्मोन्स को मोचक कारक (Releasing factor) भी कहते हैं। इस भाग में दो हॉर्मोन बनते हैं -(i) वेसोप्रेसिन (Vasopressin or Antidiuretic hormone) - यह हॉर्मोन एक पॉलिपेप्टाइड है, जो नौ अमीनो अम्लों का बना होता है। यह दूरस्थ कुण्डलित नलिकाओं तथा संग्रह नलिकाओं में जल पुनरावशोषण को बढ़ा कर सूत्र की मात्रा कम कर देता है। इसी कारण इसे A.D.H. (Antidiuretic hormone) कहते हैं। यह कुछ भागों की रक्त वाहिनियों को संकुचित करके रक्त दाब बढ़ा लेता है। इसकी अधिकता से मूत्र की कमी हो जाती है, जबकि कमी से मूत्र में पानी की मात्रा बढ़ जाती है तथा रुधिर केशिकाएँ संकुचित हो जाती हैं, फलत: रुधिर दाब बढ़ जाता है और पेशाब अधिक आती है और मूत्रलता बीमारी होती है।(ii) ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) - यह भी नौ अमीनो अम्ल का पॉलिपेप्टाइड है। यह गर्भावस्था के अन्तिम समय में गर्भाशय की अनैच्छिक पेशियों के संकुचन को प्रेरित करता है और प्रसव के समय गर्भाशय के फैलने तथा प्रसव के बाद गर्भाशय के संकुचन को प्रेरित करने के साथ दुग्ध स्राव पर भी नियन्त्रण करता है।पीयूष ग्रन्थि के कार्यों का नियन्त्रण, पुनर्निवेशन प्रक्रिया के द्वारा किया जाता है।

पीयूष ग्रंथि का चित्र
पीयूष ग्रंथि कहां पाई जाती है
piyush granthi
gland in hindi
पीयूष ग्रंथि की संरचना
पीयूष ग्रंथि क्या है
पीयूष ग्रंथि का कार्य
piyush granthi kya hai