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अण्डाशय पर टिप्पणी - Comments on Ovary in Hindi

अण्डाशय (Ovary)

मादा में अण्डाशय एक जोड़ो बादाम के आकार के होते हैं। उदर गुहा में नीचे गर्भाशय के दोनों ओर होते हैं।

प्रत्येक ओवरी या अण्डाशय जर्मिनल एपीथिलियम से आस्तरित होते हैं। इस स्तर के नीचे संयोजी ऊतक ट्यूनिका एल्बूजीनिया पाया जाता है। अण्डाशय का बाहरी भाग कॉर्टेक्स कहलाता है व भीतरी भाग मेड्यूला कहलाता है। कॉर्टेक्स में कई कोशिकाओं की बनी गोल रचनाएँ पाई जाती हैं, जिन्हें अण्डाशयो पुटिकाएँ (Ovarian follicle) कहते हैं। ओवरी के विकास के समय जर्मिनल एपीथिलियम कॉर्टेक्स के अन्दर धँसकर (Follicle) पुटिका का निर्माण करती है। इस फॉलिकल या पुटिका की एक कोशिका प्राथमिक ऊसाइट कहलाती है और विकसित होकर अण्डाणु का निर्माण करती है।मनुष्य के ओवरी में ये फॉलिकल चार विकासात्मक अवस्था में पाई जाती है -(i) प्रिमोर्डियल फॉलिकल - यह प्रिमिटिव फॉलिकल है, जो भ्रूणीय अवस्था में ओवरी में पाई जाती है। कुछ जन्म के बाद भी दिखाई देती है।(ii) प्राथमिक फॉलिकल - प्रिमिटिव फॉलिकल ही विकसित होकर प्राथमिक फॉलिकल बनाता है।।(iii) द्वितीयक वैसीकुलर फॉलिकल - यह प्राथमिक फॉलिकल से विकसित होते हैं। यह विभाजित होकर ऊसाइट के चारों तरफ कई कोशिका मोटा स्तर बनाकर वेसीकुलर फॉलिकल बनाती है।(iv) ग्रैफियन फॉलिकल - यह ओवा या अण्ड निर्माण की अंतिम अवस्था होती है। यह द्वितीयक ऊसाइट अवस्था है और ओवरी से बाहर निकलने को तैयार होता है। इसके निर्माण के लिये वेसीकुलर फॉलिकल विभाजित होकर चारों और कई स्तर बना देते हैं। यह आकार में बड़ी हो जाती है और एक बीच में गुहा (Cavity) बन जाती है, जिसे एण्ट्रम कहते हैं। एण्ट्रम के चारों ओर की फॉलिकल कोशिका एक स्तर बना देती है जिसे जोना ग्रैन्यूलोसा कहते हैं। इस स्थिति में ग्रैफियन फॉलिकल पूरी तरह से विकसित हो जाता है। इस समय इसका व्यास 10 mm तथा इसके अन्दर अण्डाणु 100-50 तक होता है। इस प्रकार फॉलिकल निर्माण के समय प्रिमिटिव फॉलिकल ओवरी गुहा के अंदर धीरे-धीरे गति करती रहती है। लेकिन ग्रैफियन फॉलिकल में परिवर्तित होने के बाद पुनः ओवरी के दीवार की ओर आ जाती है और फट जाती है और अण्डाणु देहगुहा में आ जाता है। यह क्रिया अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहलाती है। इसके बाद ग्रैफियन फॉलिकल में घाव बन जाता है। जिसमें रक्त भरा रहता है। इस समय इस फॉलिकल को कार्पस हीमोरैजिकम कहते हैं। शीघ्र ही इसके अन्दर फॉलिकल कोशिकाएँ भर जाती हैं। अब इस फॉलिकल को कार्पस ल्यूटियम कहते हैं। कार्पस ल्यूटियम का बनना, संरक्षण तथा अण्डोत्सर्ग पिट्यूटरी ग्रंथि की L.H. और F. S. H. हॉर्मोनों द्वारा होता है।यदि अण्डोत्सर्ग के बाद निषेचन हो जाता है तो कार्पस ल्यूटियम गर्भ के सातवें महीने तक बना रहता है। और निषेचन नहीं हो पाता है तो यह विलुप्त हो जाता है। कार्पस ल्यूटियम कुछ हॉर्मोन का नियंत्रण करता है, जो गर्भधारण व दुग्ध निर्माण को प्रेरित करते हैं।