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कोरी चक्र पर टिप्पणी - Comments on Cori Cycle in Hindi

कोरी चक्र (Cori Cycle)

शरीर की पेशियों द्वारा अत्यधिक कार्य करने के कारण पेशी में कुछ विशेष परिवर्तन होते हैं। इन अभिक्रियाओं के द्वारा परिवर्तनों में लैक्टिक अम्ल को बाहर निकाला जाता है। यह अभिक्रिया पेशियों के अलावा यकृत में भी होती है। इन सभी परिवर्तनों को कोरी चक्र कहते हैं।पेशी संकुचन के समय पेशी की ग्लाइकोजेन से ग्लाइकोलिसिस विधि के द्वारा ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। ग्लाइकोलिसिस में उत्पन्न पाइरुविक अम्ल एवं लैक्टिक अम्ल शीघ्र ही CO2 और H2O में ऑक्सीकृत होते हैं । यह क्रिया इतनी तेजी से होती है कि लैक्टिक अम्ल पेशी तन्तुओं में एकत्रित नहीं हो पाता है। अधिक कार्य करने के समय पेशियों में लैक्टिक अम्ल अधिक मात्रा में बनता है। यह लैक्टिक अम्ल कैब चक्र के द्वारा आसानी से निकाला नहीं जाता है और यह लैक्टिक अम्ल रक्त द्वारा यकृत में पहुँचता है। यकृत में लैक्टिक अम्ल ग्लाइकोजन में बदल जाता है। यह ग्लाइकोजन पुनः ग्लूकोज में यकृत में ही बदलता है। यह ग्लूकोज पेशियों में पहुँच जाता है ग्लूकोज पेशियों में पुन: ग्लाइकोजन में बदल जाता है। पेशी में ऊर्जा ATP के रूप में आती है। ATP एक्टिन एवं मायोसिन में पहुँच जाता है। पेशी में जब क्रिया विभव (Action Potential) पहुँचता है तब ATPase एन्जाइम के द्वारा ATP में विघटित हो जाता है और एक्टिन एवं मायोसिन निर्मित होते हैं। इस समय सार्कोमियर आकार में छोटा होता है। Mg+ आयन्स की उपस्थिति में संकुचन नहीं होता है।फिर भी यदि कैल्सियम का घोल डाला जाय तो पेशी संकुचन होता है। पेशी संकुचन के पहले ऊष्मा उत्पन्न होती है। इस ऊष्मा को आरंभिक ऊष्मा कहते हैं पेशी विश्राम के बाद रासायनिक क्रिया के द्वारा ऊष्मा लगातार निकलती रहती है, इस ऊष्मा को रिकवरी ऊष्मा कहते हैं।प्रोटीन के अलावा विशेष प्रकार के आयनों एवं ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है। जैसे Mgh. Cat K' आदि। जब पेशी को तंत्रिका तन्तु से उत्पीडन प्राप्त होती है। तब सार्कोप्लाज्मिक रेटिकुलम में Cat+ आयन स्वतंत्र हो जाते हैं तथा संकुचन की क्रिया में सहायता करते हैं उसके बाद यह पुनः ऊर्जा की सहायता से सार्कोप्लाज्मिक रेटिकुलम में एकत्रित कर लिए जाते हैं यह क्रिया पुनः दोहराई जाती है।