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क्लोराइड शिफ्ट पर टिप्पणी - Comments on Chloride shift in Hindi

क्लोराइड शिफ्ट (Chloride shift)

श्वसन के दौरान उत्पन्न होने वाली CO2 (कार्बन- डाइऑक्साइड) जल से मिलकर कार्बोनिक अम्ल H2CO3 में बदल जाती है। H2CO3 का H+ तथा HCO-3 विघटन होता है। HCO-3 या बाइकार्बोनेट आयन की संख्या रक्त की लाल कोशिकाओं में काफी अधिक होती जाती है। अतः ये आयन अब रुधिर प्लाज्मा में विसरित होने लगते हैं। प्रत्येक बाइकार्बोनेट आयन, जो लाल रक्त कणिका से निकलकर, प्लाज्मा में जाता है, तथा प्लाज्मा से एक ऋणात्मक आवेश वाला क्लोराइड आयन (CI) लाल रुधिर कणिका में पहुँचता है। इस तरह अम्ल-क्षार संतुलन को बरकरार रखा जाता है। इसके फलस्वरूप लाल रक्त कोशिकाओं की कार्बन-डाइ-ऑक्साइड को वहन करने की शक्ति और भी बढ़ जाती है, इसी को हमबर्गर प्रक्रिया या क्लोराइड शिफ्ट (Chloride Shift) कहते हैं। इस प्रक्रिया में बाइकार्बनेट को इस प्रकार हटाने से कार्बोनिक अम्ल का निर्माण तेजी से होता है।