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एड्रीनल ग्रंथि पर टिप्पणी - Comments on Adrenal Gland in Hindi

एड्रीनल ग्रंथि (Adrenal Gland)

स्थिति (Position) - दोनों वृक्कों के शीर्ष पर टोपी के समान एक-एक अधिवृक्क ग्रंथि पाई जाती है, जो गाढ़े भूरे रंग की होती है। इसका बाहरी भाग भ्रूण के मीजोडर्म तथा आंतरिक भाग न्यूरल एक्टोडर्म से बनता है।संरचना (Structure) - मनुष्य में प्रत्येक ग्रन्थि 4 से 6 ग्राम की होती है। सम्पूर्ण ग्रन्थि एक तन्तुमय संयोजी ऊतक सम्पुट (Capsule) के आवरण से घिरी रहती है। सम्पुट के अन्दर का भाग दो स्तरों में बँटा रहता है -(A) वल्कीय भाग (Cortex) – यह मीजोडर्म से बनने वाला बाहरी भाग है, जो इस ग्रन्थि का 90% भाग बनाता है। इसे तीन भागों में बाँटते हैं। पहला बाहरी भाग जोना ग्लोमेरुलोसा, दूसरा जोना फैसीकुलेटा तथा तीसरा जोना रेटिकुलेरिस कहलाता है। इस भाग की कोशिकाएँ स्रावी प्रकृति की होती हैं और 40 से 45 हॉर्मोन्स का लावण करती हैं, जिन्हें कॉर्टिकॉइड्स (Corticoids) कहते हैं। रासायनिक दृष्टि से सभी स्टीरॉइड्स (Steroids) होते हैं। इसके हॉर्मोन्स में से बहुत कम ही सक्रिय होते हैं, जिन्हें चार समूहों में बाँटते  है -(i) लिंग हॉर्मोन्स (Sex hormones) - कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ नर तथा मादा दोनों में ही दोनों प्रकार के हॉर्मोन्स को पैदा करती हैं, लेकिन इनके जनदों में बने हॉर्मोन्स विपरीत हॉर्मोन के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं। ये लिंग हॉर्मोन्स द्वितीयक लैंगिक लक्षणों एवं यौन व्यवहार (Sexual behaviour) आदि को नियन्त्रित करते हैं। ये हॉर्मोन पेशियों तथा कंकालों की वृद्धि पर भी नियन्त्रण रखते हैं। इसके द्वारा स्रावित नर हॉर्मोन को ऐण्ड्रोजेन तथा मादा द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन को एस्ट्रोजेन व प्रोजेस्टीरॉन (Estrogen and Progesterone) कहते हैं।जब छोटे बच्चों में हॉर्मोन का स्राव बढ़ जाता है तो बच्चे कम उम्र में ही जनन की दृष्टि से परिपक्व हो जाते हैं। यदि नर में मादा हॉर्मोन ज्यादा बनने लगते हैं तो इसमें मादा के कुछ लक्षण दिखने लगते हैं। इसके विपरीत यदि मादा में नर हॉर्मोन ज्यादा बनने लगते हैं, तो उसमें नर के लक्षण जैसे दाढ़ी-मूंछ आना आदि दिखने लगते हैं। इस हॉर्मोन की अधिकता से पेरू नामक देश की एक लगभग पाँच वर्ष की लड़की ने बच्चे को जन्म दिया। इस हॉर्मोन की कमी से व्यक्ति जनन की दृष्टि से देर में परिपक्व होता है।(ii) मिनरेलोकॉर्टिकॉइड्स (Mineralocorticoids) - ये हॉर्मोन्स रुधिर में खनिज लवणों को मात्रा को नियन्त्रित करते हैं ऐल्डोस्टीरॉन (Aldosterone) एक महत्वपूर्ण मिनरलोकॉर्टिकॉइड हॉर्मोन है, जो वृक्क नलिकाओं द्वारा Na+ और CI आयन के अवशोषण का नियमन करता है।(iii) कॉर्टिसोन (Cortison) - यह शरीर में प्रोटीन की उपापचय को प्रभावित करता है।(iv) ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स (Glucocorticoids) – ये शरीर में ग्लूकोज, प्रोटीन और वसा की उपापचय को नियन्त्रित करते हैं। यकृत में ग्लूकोज से ग्लाइकोजेन बनने की क्रिया का नियन्त्रण भी ये ही हॉर्मोन करते हैं। ये शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स (Electrolytes) के वितरण तथा जल व लवणों के सन्तुलन का भी नियन्त्रण करते हैं।पीयूष ग्रन्थि का ऐड्रीनो कॉर्टिको ट्रॉफिक हॉर्मोन (A.C.T.H.) कॉर्टेक्स के हॉर्मोन स्रावण पर नियन्त्रण रखता है। यदि शरीर से ऐड्रीनल ग्रन्थि का कॉर्टेक्स निकाल दिया जाय तो उपापचयी क्रियाएँ अव्यवस्थित हो जाती हैं और उस व्यक्ति को ऐडिसन (Addison's) रोग हो जाता है। कॉर्टेक्स के हॉर्मोन की अधिकता से असामयिक लैंगिक परिपक्वता आती हैं। यहाँ तक की विपरीत लिंग हॉर्मोन देकर लिंग परिवर्तन भी किया जा सकता है।(B) मज्जा भाग (Medulla) - यह अधिवृक्क ग्रन्थि का आन्तरिक भाग है, जो इस ग्रन्थि का शेष 10% भाग बनाता है। इसका नियन्त्रण स्वाधीन तन्त्रिका तन्त्र द्वारा किया जाता है और भ्रूणीय अवस्था में यह न्यूरल भाग से ही विकसित होता है। इसमें दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं। बड़ी कोशिकाएँ गुच्छों में तथा छोटी कोशिकाएँ पंक्तियों में व्यवस्थित होती हैं। इस भाग की कोशिकाएँ टायरोसीन अमीनो अम्ल से दो प्रकार के हॉर्मोन बनाती हैं -(i) ऐडीनेलीन या एपिनेफ्रीन (Adrenalin or Epinephrine) - यह हॉर्मोन अरेखित पेशियों को उत्तेजित करता है, जिससे शरीर के बाहर तथा अन्दर की ओर रुधिर केशिकाओं की दीवार संकुचित हो जाती है, जिसके फलस्वरूप रुधिर दाब बढ़ जाता है, हृदय तेजी से धड़कने लगता है, शरीर के रोम खड़े हो जाते हैं, पुतली फैल जाती है, पसीना आने लगता है, आँसू गिरने लगते हैं, रुधिर थक्का तेजी से बनता है तथा श्वसन की दर बढ़ जाती है, इन सब कारणों को एक साथ डर जाना कहते हैं। वास्तव में यह तब होता है, जब कोई संकट आ जाता है, उस समय अचानक ऐड्रीनेलीन का स्राव तेजी से होने लगता है, जिससे उपर्युक्त लक्षण दिखायी देने लगते हैं।साथ ही यकृत में ग्लाइकोजन का ग्लूकोज में परिवर्तन तेजी से होता है और मनुष्य में संकट से लड़ने की क्षमता या भयभीत होने पर भागने की क्षमता आ जाती है। इस कारण इस हॉर्मोन को संकटकालीन हॉर्मोन (Emergency hormone) भी कहते हैं।यह चिकित्सा विज्ञान में भी महत्वपूर्ण कार्य करता है। कभी-कभी हृदय गति अचानक रुक जाने पर इसे हृदय में सीधे पहुँचाकर उसमें फिर से गति लायो जाती है। अस्थमा (Asthama) में भी इसके प्रयोग से आराम मिलता है। मुख, नाक, गला में मामूली चीर-फाड़ करते समय तथा दाँत निकालते समय चिकित्सक रक्त के बहाव को रोकने के लिए ऐड्रोनेलीन की एक फुहार इन अंगों पर डाल देते हैं।(i) नॉन-ऐड्रोनेलीन या नॉर एपिनेक्रीन (Non-adrenalin or Nor-epinephrine) - यह ऐडीनेलीन के समान ही कार्य करता है, लेकिन इसके प्रभाव से रुधिर केशिकाएँ संकुचित होने के बजाय फैल जाती हैं, जिससे हृदय गति तेज नहीं होती और न ही रुधिर दाब बढ़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ऐड्रीनेलीन तथा नॉर-ऐड्रीनेलीन एक प्रकार से स्वाधीन तन्त्रिका तन्त्र की सहायता करते हैं।

अनियमित अधिवृक्क स्त्रावण से रोग

(A) अल्पस्त्रावण (Hyposecretion) - इससे निम्नलिखित रोग होते हैं -(i) एडिसन रोग - इस रोग का अध्ययन थॉमस एडिसन ने किया था। यह ग्लूकोकॉर्टिकॉइड हॉर्मोन के अल्पनाव से होता है। इस रोग में रोगी की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं, सहवास की इच्छा समाप्त हो जाती है। तथा त्वचा पर कांस्य रंग के चकते पड़ जाते हैं। शरीर में निर्जलीकरण के कारण रुधिर दाब घट जाता है और पाचन सम्बन्धी विकार पैदा हो जाता है(ii) हाइपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) - यह भी ग्लूकोकॉर्टिकॉइड की कमी के कारण होता है। इस रोग में मस्तिष्क, यकृत तथा हृदय की पेशियों की क्रियाएँ घट जाती हैं, शरीर का ताप भी गिर जाता है।(iii) कान्स रोग (Conn's disease) - यह मिनरेलोकॉर्टिकॉइड की कमी से होता है। इसमें तन्त्रिकाओं की गड़बड़ी होकर पेशियों में अकड़न आ जाती है और मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।(B) अतिस्त्रावण (Hypersecretion) - इससे निम्नलिखित रोग होते हैं -(i) कुशिंग रोग (Cushing's disease) - इस रोग में रोगी के वक्षीय भाग में असामान्य रूप में वसा का जमाव हो जाता है।(ii) ऐड्रीनल विरिलिज्म (Adrenal virilism) – यह रोग स्त्री में ऐण्ड्रोजन के अधिक बनने के कारण होता है। इस रोग में स्त्रियों में पुरुषों जैसे लक्षण बनने लगते हैं। जैसे-चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ का आना, आवाज का भारी होना तथा बाँझ होना। इसके कारण समय से पूर्व परिपक्वन भी होता है।संश्लेषण (Synthesis) - रक्त में अधिकांश कोलेस्ट्रॉल, एस्टर और वसा बूंद के रूप में संगृहीत होता हैं। माइटोकॉण्डिया में स्वतंत्र कोलेस्टेरॉल, प्रेगनेनोलोन सिंथेटेज द्वारा 4 प्रेगनेनोलोन में परिवर्तित हो जाता है। चिकनी E.R. में प्रेगनेनोलोन 30 हाइड्रॉक्सी स्टोरॉइड डीहाइड्रोजीनेज द्वारा प्रोजेस्टोरॉन में परिवर्तित होता है, जो C21 अथवा C12 में जल अपघटित हो जाता है। E.R. में प्रोजेस्टीरॉन के 17a-हाइड्रॉक्सीकरण होने से कॉर्टिसोल की उत्पत्ति होती है। यह हॉर्मोन निर्मित होते ही विसर्जित कर दिए जाते हैं। लवण का नियंत्रण रेनिन- एन्जियोटेन्सिन प्रणाली, A.C.T.H. तथा सोडियम एवं पोटैशियम आयनों की सांद्रता पर निर्भर होता है।