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निषेचन की प्रक्रिया पर टिप्पणी | Comment on the process of Fertilization in Hindi

निषेचन (Fertilization)

जनन की क्रिया में शुक्राणु (sperm) के द्वारा परिपक्व अण्डाणु का भेदन तथा नर एवं मादा प्रोन्यूक्लियाई का आपस में संयोजन निषेचन कहलाती है। लैंगिक जनन की क्रिया में अगुणित (haploid) नर तथा मादा युग्मकों के संयोजन के फलस्वरूप द्विगुणित (diploid) जाइगोट बनने की क्रिया को निषेचन कहते हैं।

निषेचन मूलत: दो तरह की क्रिया को संपादित करते हैं

(1) निषेचन से अण्डा सक्रिय हो जाता है तथा विकास एवं विभाजन की क्रिया को प्रारम्भ करता है।

(2) निषेचन के द्वारा नर अगुणित नाभिक को अण्डे के कोशिकाद्रव्य में पहुँचाया जाता है। नर एवं मादा नाभिक एवं कोशिकाद्रव्य के संयोजन (fusion) से द्विगुणित जाइगोट नाभिक का निर्माण होता है। इस क्रिया द्वारा मातृ पक्ष एवं पितृ पक्ष के गुणों का मिलन होता है। परिणामस्वरूप संतति में नये गुणों का समावेश होता है।

निषेचन का स्थान (Site of Fertilization)

निषेचन हमेशा जलीय माध्यम में ही होता है चाहे वह शरीर के बाहर स्वच्छ या समुद्री जल में हो या फिर शरीर के अन्दर देहगुहीय द्रव में यह क्रिया सम्पन्न हो । कुछ जन्तुओं में शुक्राणु को जल में छोड़ा जाता है, जो कि अण्डाणु तक गति करते हुए पहुँचते हैं और बाह्य निषेचन करते हैं। यह क्रिया शरीर के बाहर की ओर होती है, लेकिन उच्च कशेरुकी प्राणियों में शुक्राणु को विशिष्ट जनन अंगों की सहायता से मादा के शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है और निषेचन की क्रिया शरीर के अन्दर सम्पन्न होती है। इस प्रकार का निषेचन आंतरिक निषेचन कहलाता है।

मोनोस्पर्मी एवं पॉलिस्पर्मी (Monospermy and Polyspermy) - जब किसी अण्डाणु का निषेचन केवल एक ही शुक्राणु के द्वारा किया जाता है, तब यह स्थिति मोनोस्पर्मी कहलाती है। निषेचन के पश्चात् निषेचन झिल्ली बन जाने के कारण अन्य दूसरे शुक्राणु का अन्दर प्रवेश रोक दिया जाता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में अण्डाणु के अन्दर अनेक शुक्राणु प्रवेश कर जाते हैं, भले ही निषेचन केवल एक ही शुक्राणु के द्वारा होता है, तब यह स्थिति पॉलिस्पर्मी (Polyspermy) कहलाती है।

निषेचन की प्रक्रिया (Process of Fertilization)

निषेचन की क्रिया को निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया जा सकता है -

(1) शुक्राणु का अण्डाणु की ओर चलन - निषेचन बाह्य हो या आंतरिक दोनों ही परिस्थितियों में शुक्राणु, अण्डाणु की तरफ आकर्षित होते हैं एवं गति करने लगते हैं। अण्डाणु के बाहर एक रसायन फर्टिलाइजिन (Fertilizin) नामक प्रोटीन का स्राव किया जाता है। शुक्राणु जब इसी से आकर्षित होकर पास में पहुँचते हैं और ऐण्टिफर्टिलाइजिन (Antifertilizin) नामक पदार्थ का स्रावण करते हैं। ये दोनों रसायन आपस में एक-दूसरे को आकर्षित करने का कार्य करते हैं। फर्टिलाइजिन, ऐण्टिफर्टिलाइजिन के लिए ग्राही (Receptor) का कार्य करता है। इस तरह से शुक्राणु उसी जाति के अण्डाणु को ही निषेचित कर सकते हैं। यह क्रिया साधारण या केपेसाइटेशन (Capacitation) कहलाती है।

(2) अण्डाणु का शुक्राणु में प्रवेश - अण्डाणु की सतह से चिपकने के पश्चात् शुक्राणु के ऐक्रोसोम से लाइटिक एन्जाइम (Lytic enzyme) का स्त्रावण किया जाता है, जो अण्डाणु के बाह्य स्तर को घोलकर एक रास्ता बनाता है, जिसमें से होकर शुक्राणु अण्डाणु के अन्दर प्रवेश कर जाता है।

(3) अण्डाणु की शुक्राणु के प्रति प्रतिक्रिया - शुक्राणु जैसे ही अण्डाणु के संपर्क में आता है कोशिकाद्रव्य द्वारा एक निषेचन शंकु का निर्माण किया जाता है। इसी स्थान से शुक्राणु का सिर अण्डाणु खिंचता चला जाता है। साथ ही अण्डाणु के परिधीय कोशिकाद्रव्य में अनेक परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं। निषेचन के तुरन्त बाद ही निषेचन कला का निर्माण प्लाज्मालेमा के द्वारा होता है।

(4) अण्डाणु के अन्दर शुक्राणु का व्यवहार - शुक्राणु में प्रवेश के समय ऐक्रोसोम आगे की तरफ होता है और इसके पीछे नाभिक आदि संरचनाएँ स्थित होती हैं। अब केन्द्रक 180°C पर घूमता है और इस समय शुक्राणु का केन्द्रक वेसिकल के समान हो जाता है तथा क्रोमैटिन पदार्थ अकणिकीय हो जाता है तथा सेन्ट्रोसोम के चारों ओर ऐस्टर (aster) बन जाता है। अब दोनों केन्द्रक आमने-सामने आकर परस्पर मिल जाते हैं तथा जाइगोट नाभिक का निर्माण हो जाता है।

निषेचन का महत्व (Importance of Fertilization)

(1) शुक्राणु के अण्डे में प्रवेश से अण्डाणु का द्वितीय परिपक्वन विभाजन पूर्ण होता है।

(2) शुक्राणु तथा अण्डाणु के सेन्ट्रियोल जाइगोट में पहुँच जाते हैं, जिससे स्पिंडल का निर्माण शुरू हो जाता है.

(3) निषेचन के उपरान्त विटेलाइन झिल्ली अण्डे से पृथक् हो जाती है, जिससे अण्डा इसके अन्दर घूम सकता है।

(4) अण्डाणु में ध्रुव कोशिकाओं के बनने से कोशिकाद्रव्य की क्षति को शुक्राणु के कोशिकाद्रव्य द्वारा पूर्ण कर लिया जाता है।

(5) अण्डाणु के कोशिकाद्रव्य में गति उत्पन्न हो जाने से निषेचन पथ एवं शुक्राणु पथ बनाने में सहायता मिलती है।

(6) अण्डे में नया अक्ष बनता है तथा चयापचय क्रियाओं में वृद्धि होती है।